Friday 11 July 2014

CLASS 10 HINDI- KRITIKA-GEORGE PANCHAM KI NAK (जार्ज़ पंचम की नाक)

 जार्ज़ पंचम की नाक

प्रश्न १ - सरकारी तंत्र में ज़ार्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिन्ता या बदहवासी दिखाई देती है , वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है ?
उत्तर - सरकारी तंत्र में ज़ार्ज पंचम की नाक को लेकर जो चिन्ता या बदहवासी दिखाई देती है,वास्तव में वह उसके पिट्ठूपन, चमचागीरी , और अपने देश तथा कर्तव्य के प्रति संवेदन-शून्यता का परिचायक है।समय रहते अपना काम न करना, अपनी गलतियों की लीपापोती करना, आम लोगों की आँखों में धूल झोंककर अपना उल्लू सीधा करना और अपने आला अधिकारियों से वाहवाही बटोरने के लिए देश और महापुरूषों तक का अपमान करने को सदा तैयार रहना इनकी पुरानी और स्थायी आदत है।

प्रश्न २- रानी एलिजाबेथ के दरज़ी की परेशानी का क्या कारण था ? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर  - रानी एलिजाबेथ का दरज़ी न तो इतिहासकार था , न समाजशास्त्री और न ही कोई मौसम-विज्ञानी । उसे भारत, पाकिस्तान और नेपाल के पहनावे - ओढ़ावे या मौसम की कोई जानकारी नहीं थी । ऐसे में वह समझ नहीं पा रहा होगा कि रानी के लिए उसे कैसे परिधान तैयार करने चाहिए । उसे पता था कि वेश-भूषा मान-सम्मान का द्योतक होता है।मेरे विचार से दरज़ी की परेशानी उचित थी । आखिरकार रानी ने उसे ही वेश-भूषा की ज़िम्मेदारी सौंपी होगी।

प्रश्न ३ - ‘और देखते ही देखते नई दिल्ली का काया पलट होने लगा’ - नई दिल्ली ने काया पलट के लिए क्या-क्य प्रयत्न किए गए होंगे ?
उत्तर - नई दिल्ली ने महारानी के आगमन पर अपनी काया पलट करने लिए सरकारी भवनों को रंगवाया होगा । सड़कें और नालियों की सफाई हुई होगी। चौराहों पर लाईट की व्यवस्था हुई होगी। सड़कों के नाम की पट्टी लगाकर रेलिंग और क्रासिंग को रंगीन किया गया होगा । जगह-जगह स्वागत द्वार बनाया गया होगा । इन सब प्रयत्नों से नई दिल्ली ने अपनी काया पलट की होगी।

प्रश्न ४- आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है-
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
उत्तर- ऐसी पत्रकारिता से लाभ कम और हानि अधिक है। हानि इसलिए क्योंकि हमारी मानसिकता आज अनुकरण की मानसिकता बनती जा रही है । हमें चर्चित लोगों की जीवनशैली अच्छी लगती है । परंतु बहुत कम लोग हैं जो अनुकरणीय हैं । अत: ऐसी पत्रकारिता ठीक नहीं । इससे समाज  को कोई फायदा नहीं होता है । हाँ; पत्रकार को चर्चित व्यक्ति से वाहवाही या पुरस्कार मिलने की संभावना रहती है । परंतु मात्र व्यक्तिगत प्रशंसा या पुरस्कार के लिए समाज के एक विशेष पाठकवर्ग को खाई में ढकेलना पत्रकारिता करना नहीं , अपराध और चमचागीरी करना है। ऐसी पत्रकारिता से परहेज़ करना चाहिए।

(ख) इस प्रकार की पत्रकारिता आम जनता खास कर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है ?
उत्तर- इस प्रकार की पत्रकारिता पाठकों को दिग्भ्रमित करती है और विशेषकर युवा पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव डालती है । युवा पीढ़ी चर्चित हस्तियों के बोलने , चलने-फिरने और पहनने आदि का नकल करती है साथ ही उनके जैसा जीवन-शैली अपनाने की कोशिश में अपराध करने से भी नहीं हिचकती । ऐसी पत्रकारिता से सौंदर्य प्रसाधन और पहनावे का क्षेत्र विशेष रूप से कुप्रभावित होता है। इसलिए ऐसी पत्रकारिता युवा पीढ़ी के लिए अहितकर है।

प्रश्न ५ - ज़ार्ज पंचम की लाट की नाक को पुन: लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किया ?
उत्तर- ज़ार्ज पंचम की लाट की नाक लगाने के लिए मूर्तिकार ने कई युक्तियाँ भिड़ाई । हुक्मरानों को कई सुझाव भी दिए। मूर्ति की जन्म-पत्री हाथ न लगने पर अर्थात् पत्थर के प्रकार आदि का पता न चलने पर व्यक्तिगत रूप से नाक लगाने की ज़िम्मेदारी लेते हुए देश भर के पहाड़ों और पत्थर की खानों का तूफ़ानी दौरा किया । जब सम्भावित पत्थर न मिल पाया तो हुक़्मरानों की इज़ाजत लेकर देश भर के नेताओं और महापुरूषों की मूर्तियों को टटोलना शुरू किया। उसने देश भर नेताओं और महापुरूषों की नाक नापने के बाद पटना सेक्रेटेरियट के सामने बने शहीद स्मारक के बच्चों की नाक भी नापी परन्तु ; दुर्भाग्य से सभी की नाक ज़ार्ज पंचम की नाक से बड़ी निकली । हताश मूर्तिकार और चिन्तित एवम् आतंकित हुक्मरानों ने अंतत: एक ज़िन्दा आदमी की नाक काटकर लगा दी । इस प्रकार ज़ार्ज पंचम की लाट भी नाकवाली लाट बन गई । 

प्रश्न ६- प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं।उदाहरण के लिए ‘फ़ाईलें सब कुछ हज़म कर चुकी है।’ ‘सब हुक्कामों ने एक-दूसरे की तरफ़ ताका।’ पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
उत्तर- मौजूदा व्यवस्था पर चोट करने वाले कुछ कथन निम्नलिखित हैं-
(क) शंख इंग्लैण्ड में बज रहा था,गूँज हिन्दुस्तान में आ रही थी।
(ख) सड़कें जवान हो गईं,बुढ़ापे की धूल साफ़ हो गई।
(ग) दिल्ली में सब था,सिर्फ नाक नहीं थी।
(घ) रानी आए और नाक न हो,तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी।
(ङ) उनकी हालत देखकर लाचार कलाकर की आँखों में आँसू आ गए।
(च) विदेशों की सारी चीजें अपना चुके हैं।
(छ) चालिस करोड़ में से कोई एक ज़िंदा नाक काटकर लगा दी जाए।


प्रश्न ७- ‘नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है।’ यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है?लिखिए।
उत्तर- ‘नाक’ इज्जत-प्रतिष्ठा,मान-मर्यादा और सम्मान का प्रतीक है।शायद यही कारण है कि इससे संबंधित कई मुहावरे प्रचलित हैं जैसे- नाक कटना,नाक रखना,नाक का सवाल,नाक रगड़ना आदि। पाठ में जार्ज पंचम की नाक कटने से उसके अपमान का संकेत मिलता है साथ ही सरकारी तंत्र की मानसिकता की स्पष्ट झलक भी दिखाई देती है। ये सभी तांत्रिक विदेशियों की नाक को ऊँचा करने को अपने नाक का सवाल बना लेते हैं और इसके लिए यदि आवश्यक हुआ तो भारतीय महापुरूषों या नेताओ की नाक नीची करवाने या कटवाने से गुरेज़ नहीं करते। 


 प्रश्न ८ - ज़ार्ज पंचम की लाट पर किसी भी भरतीय नेता , यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है ?
उत्तर - ज़ार्ज पंचम इंग्लैण्ड का राजा था जिसने भारतीय स्वतंत्रता - संग्रामियों पर बहुत ज़ुल्म ढाए थे । वह अपनी नाक हर हालत में ऊँची रखना चाहता था । परन्तु; जब देश आज़ाद हुआ तब उस नक्कू की नाक ही नहीं रही । संयोगवश उसकी लाट की नाक टूट गई थी और बहुत ढ़ूँढ़ने पर भी किसी भारतीय महापुरूष या स्वतंत्रता सेनानी की नाक फिट न बैठ सकी । इस घटना के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि वे सभी भारतीय जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने बलिदान दिए,चाहे वह बूढ़ा हो या जवान हो या फिर बच्चा ही क्यों न हो , उनकी मान-मर्यादा और इज्ज़त के समक्ष ज़ार्ज पंचम या उसके समतुल्य किसी अन्य की कोई इज्ज़त नहीं। तात्पर्य यह कि भारतीय स्वतंत्रता - संग्रामियों की इज्ज़त की तुलना में ज़ार्ज पंचम कहीं नहीं ठहरते।

प्रश्न ९ -अखबारों में ज़िन्दा नाक लगाने की ख़बर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर - भारत के सभी अख़बारों ने यह ख़बर छापी कि ज़ार्ज पंचम के ज़िन्दा नाक लगाई गई है , जो कतई पत्थर की नहीं लगती । उस दिन किसी भी अख़बार ने किसी उद्घाटन या किसी सभा की चर्चा नहीं की थी । पूरा अख़बार खाली था न जाने क्यों ? बस; एक ही खबर छपी थी।

प्रश्न १० - “नई दिल्ली में सब था....सिर्फ़ नाक नहीं थी।” इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर - प्रस्तुत कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि देश की आज़ादी के बाद नई दिल्ली के पास सबकुछ था । परन्तु ; नई दिल्ली के जो हुक़्मरान थे , उन्होंने नई दिल्ली की नाक ही कटा दी थी। एलिजाबेथ एवम् प्रिंस फ़िलिप के आने पर चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी की ज़िन्दा नाक काटकर ज़ार्ज पंचम की लाट में लगा देने की अपमान जनक बात सोचना और कर गुजरना.... उफ्फ़ ! भला इससे ज्यादा कोई अपने देश का क्या अपमान कर सकता है ।अंग्रेजों के इन पिट्ठुओं ने दिल्ली की नाक ही नहीं रहने दी थी । यदि सच में दिल्ली के पास नाक होती तो इतना बखेड़ा खड़ा न करके सीधे ज़ार्ज पंचम के लाट को ही हटवा दिया होता ।

प्रश्न १
१  - ज़ार्ज पंचम के नाक लगने वाली ख़बर के दिन अख़बार चुप    क्यों थे ?
उत्तर - अख़बार उस दिन चुप थे । चुप रहना ही शायद उन्होंने अच्छा समझा । यदि वे सच छाप देते तो पूरी दुनिया क्या कहती । दुनिया के लोग जब जानते कि आज़ादी के बाद भी दिल्ली में बैठे हुक़्मरान आज भी अंग्रेजों के आगे अपनी दुम हिलाते हैं , उनसे प्रशंसा पाने के लिए उनके पैरों में नाक रगड़ते हैं और उनकी खुशी के लिए अपने देश का सिर शर्म से झुकाने में भी नहीं हिचकते तो पूरी दुनिया में थू - थू हो जाती , इसलिए अख़बार चुप थे ।

 ॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

7 comments:

  1. इसमें इस बात का भी उल्लेख होने चाहिए कि महारानी का अआना किस सन में हुआ

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  2. मार्च १९६१ में

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  7. Hats off .....so easy hindi

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